शायद कल हो

एक फकीर था। उसने कहा कि ‘मैंने आज तक जिनके पास भी गया, सबसे सीखा।’ किसी ने पूछा, ‘यह कैसे हो सकता है? एक चोर से क्या सीखिएगा?’ उसने कहा, ‘एक बार ऐसा हुआ, हम एक चोर के घर में मेहमान थे। और ऐसा हुआ कि उस चोर के घर हम एक महीना मेहमान थे। वह रोज रात को चोरी करने निकलता और तीन बजे, चार बजे वापस लौटता। हम उससे पूछते, कहो कुछ हुआ? वह हंसकर कहता, आज तो कुछ नहीं हुआ, शायद कल हो। एक महीना वह चोरी नहीं कर पाया। कभी दरवाजे पर सैनिक मिल गया, कभी लोग घर में जगे थे, कभी ताला नहीं तोड़ पाया, कभी भीतर भी घुसा, खजाने तक नहीं पहुंच पाया। और वह चोर रोज रात को थका हुआ लौटता और हम उससे पूछते कि कहो, कुछ हुआ?वह कहता, आज तो नहीं हुआ, लेकिन कल शायद हो। हमने उससे यह सीख लिया। हमने सीख लिया कि जब आज न हो, तो फिक्र मत करना। याद रखना कि कल हो सकता है।’ ‘और एक चोर जो चोरी करने गया है, निपट खराब काम करने गया है, वह भी इतनी आशा से भरा है।’ तो उस फकीर ने कहा,‘उन दिनों हम परमात्मा की तलाश में थे,हम परमात्मा की चोरी में लगे थे। हम भी वहां दीवालें खटखटा रहे थे और दरवाजे टटोल रहे थे, कोई रास्ता नहीं मिलता था। हम थक गए थे और निराश हो गए थे और हमने सोचा था, फिजूल है सब, छोड़ें। लेकिन उस चोर ने हमको बचा लिया। और उसने कहा, आज नहीं हुआ, कल शायद होगा। और हमने यह सूत्र बना लिया कि आज नहीं होगा, तो कल शायद होगा। और फिर वह दिन आया कि बात घटित हुई। चोर ने चोरी कर ली और हमने भी परमात्मा चुरा लिया।’ तो सवाल यह नहीं है कि आप सदपुरुष से ही सीखेंगे। सवाल यह है कि सीखने की बुद्धि और समझ हो, तो इस सारे जगत में सदपुरुष भरे हुए हैं। -ओशो”

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