यजुर्वेद उन्नति

देवो वः सविता प्रार्पयतु श्रेष्ठमाय कर्मण।

सबको उत्पन्न करने वाला देव, तुम सबको श्रेष्ठतम कर्म को प्रेरित करे।

यहां यह प्रेरणा मिलती है कि सबको मिलजुल कर श्रेष्ठतम कर्मों को करना चाहिए, तभी उन्नति संभव है। प्रत्येक मनुष्य की यह महत्वांकांक्षा होनी चाहिए कि वह ऐसे कार्य करें जो उन्नतिकारक एवं प्रशंसनीय हों। ऐसे कर्म नहीं करने चाहिएं जो अवनति की ओर प्रवृत करें। यहां श्रेष्ठतम कर्म करने का आदेश हैं। ऐसे सर्वोतम कर्मो के प्रतिफल में सर्व प्रकार से उन्नति होती है.

मा ह्वार्मा ते यज्ञपतिह्वार्षइत।

तू कुटिल न बन व न तेरा यज्ञपति भी कुटिल होवे।

सुकर्म करने के लिए अकुटिल अर्थात सरल होना चाहिए.

साविश्वायु: सा विश्वाकर्मा सा विश्वाधायाः।

सर्व आयु, सर्व कर्म शकित व सर्व धारक शकित के रूप में ये तीन कामधेनुएं हैं।

प्रत्येक मनुष्य के पास तीन प्रकार की कामधेनुएं है- सर्व आयु, सर्व कर्मा व सर्व धाया। पुराणों में एक प्रकार की गाय की चर्चा आती है जो सब मनोरथों को पूर्ण करती है, यह स्वर्ग की गाय है जिसे कामधेनु कहते है। मनुष्य संपूर्ण आयु जो वह भोगता है अर्थात आयुरूपी धेनु को दुहता है, इसी प्रकार जीवन भर कर्म करता है अर्थात सर्वकर्मा नामक गाय को दुहता है और परिणाम स्वरूप पुरुषार्थी कहलाता है। इसी प्रकार जीवन भर धारक शकित के रूप में सर्वधाया नामक गाय को दुहता रहता है, मानो अपनी धारक शकित को बढा रहा हो। अतः स्पष्ट है- जीवन भर पुर्ण लगन से प्रयत्न करोगे तभी परम लक्ष्य प्राप्त कर सकोगे अर्थात तीनों प्रकार की कामधेनुओं को भली-भांति दुह सकोगे।

Leave a Comment

Your email address will not be published.