चार मूर्ख

एक बार काशी नरेश ने अपने मंत्री को यह आदेश दिया कि जाओ और तीन दिन के भीतर चार मूर्खों को मेरे सामने पेश करो। यदि तुम ऐसा नहीं कर सके तो तुम्हारा सिर कलम कर दिया जाएगा।

पहले तो मंत्री जी थोड़े से घबराये लेकिन मरता क्या न करता। राजा का हुक्म जो था। ईश्वर का स्मरण कर मूर्खों की खोज में चल पड़े।

कुछ मील चलने के बाद उसने एक आदमी को देखा जो गदहे पर सवार था और सिर पर एक बड़ी सी गठरी उठाये हुए था। मंत्री को पहला मूर्ख मिल चुका था। मंत्री ने चैन की सांस ली।

कुछ और आगे बढ़ने पर दूसरा मूर्ख भी मिल गया। वह लोगों को लड्डू बाँट रहा था। पूछने पर पता चला कि शत्रु के साथ भाग गयी उसकी बीबी ने एक बेटे को जन्म दिया था जिसकी ख़ुशी में वह लड्डू बाँट रहा था।

दोनों मूर्खों को लेकर मंत्री राजा के पास पहुंचा।

राजा ने पूछा – ये तो दो ही हैं? तीसरा मूर्ख कहाँ है?

महाराज वह मैं हूँ। जो बिना सोचे समझे मूर्खों की खोज में निकल पड़ा। बिना कुछ सोचे समझे आपका हुक्म बजाने चल पड़ा।

और चौथा मूर्ख ?

क्षमा करें महाराज? वह आप हैं। जनता की भलाई और राज काज के काम के बदले आप मूर्खों की खोज को इतना जरुरी काम मानते हैं।

राजा की आँखें खुल गयी और उनसे मंत्री से क्षमा मांगी।

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