सबसे बड़ा दाता

राजपुर नगर में दो व्यक्ति शामू और झामु रहते थे। दोनों ही थोड़े आलसी थे और भाग्य पर विश्वास करते थे। शामू कहता – यदि राजा विक्रम सिंह मुझे कुछ देता है तो गुजारा हो जाता है अन्यथा मेरे पास कुछ भी नहीं है। झामु कहता – भगवान भोलेनाथ मुझे कुछ देते हैं तो मेरा गुजारा हो जाता है नहीं तो मेरे पास तो कुछ भी नहीं।

एक दिन राजा ने दोनों को बुलाया और यह बातें उनके मुंह से सुनी।

राजा विक्रम सिंह ने एक गोल कद्दू मंगाया और उसके बीज निकाल कर शामू को दे दिया जिसका मानना था कि राजा ही उसे जो कुछ देता है उसी से उसका गुजारा होता है। राजा को भी लगने लगा कि सच में वही दाता है।

शामू उस कद्दू को पाकर बड़ा खुश हुआ और बाजार में जाकर उसे चार पैसे में बेच आया। थोड़ी देर बाद उधर से झामु गुजरा जो सोचता था कि भगवान् शिव ही उसे जो कुछ देते हैं उसी से उसका गुजारा होता है। झामु ने वह कद्दू छह पैसे में खरीद ली।

कद्दू लाकर जब उसे सब्जी बनाने के लिए काटा तो पैसों की बारिश होने लगी। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। बात राजा तक पहुंची। राजा का घमंड टूट चुका था। सारी बातें जानने के बाद उसने कहा – भगवान् ही असली दाता हैं। उनसे बड़ा कोई नहीं। उसे इसका बोध हो चुका था।

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